नमस्कार,
मित्रों,
कुछ दिनों के बाद फिर वापसी कर रहा हूँ। पूरी तरह छुट्टियों पर रहा, अपने आप से ही बातें करता, अपने में ही डूबा, अत: सम्पर्क की सम्भावना भी न के बराबर थी। पुन: सभी मित्रों का अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है-
1
आँखों का पीलापन
बदल रहा था
आहिस्ता-आहिस्ता
हरेपन में
बालू कठोर होकर
तब्दील हो गई
पहाङों में
मरूस्थल की वीरानी
भर रही थी
स्प्रू, देवदारू से
धरा के मुकुट-सी सुशोभित
मानव बस्तियां
प्राकृतिक सौन्दर्य का हार ले
स्वागतोत्सुक थी
पहाङों की रानी
शिमला।।
2
संध्यासुन्दरी-
बादल रथ पर सवार
उतर आसमान से
देवदार के मखमली बिस्तर पर
सो गई,
बूढा सूरज शरमाकर
पहाङी की ओट में
चला गया,
सौन्दर्य से अभिभूत
अपलक निहारते
जुगनू बल्ब,
ऊषा सुन्दरी के विरह में
प्रतीक्षारत डबडबाते तारे,
चाँद खिङकी
के रास्ते उतर
सीने में मुंह छुपा सो गया
लिहाफ उठाकर देखा
स्मित हास के साथ
फैली हुई थी
चाँदनी।।
5
अलौकिक
पहाङी सौन्दर्य,
स्मृतियों को
अंकित कर अपने
मानस पटल में
लेता हूँ विदा
पीछे मुङकर देखा
वहां मेरा कोई निशान न था
सहसा याद आई मरुभूमि
कितना प्रेम देती है वह
असीम श्रद्धा से भर
सोचता हूँ
हे बालू तू ही मेरी अपनी है
क्षणभर के लिए ही सही
सहेजती तो है
मेरे कदमों के
निशान।।
5 comments:
पहाडों की सुन्दरता को सुन्दर रूप में कविता में उतारा है। बधाई।
Aapki wapasi wapasi dekh bada achha laga! Punashch swagat hai...bahut sundar rachna!
बहुत सुन्दर, तो आप शिमला जा कर आये हैं , उम्मेद जी मैं २२ तारीख को राजस्थान आ रहा हूँ, आप से मुलाकात हो जाए तो मज़ा आएगा!
मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है
बड़े काम की चीज है मोबाइल .....!
http://sanjaybhaskar.blogspot.com/2010/06/blog-post_06.html
मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है
क्या तुम मुझसे शादी करोगी ?
http://sanjaybhaskar.blogspot.com/2010/06/blog-post_09.html
गरीबी के कारण छोड़ देते हैं 21 फीसदी बच्चे पढ़ाई
http://sanjaybhaskar.blogspot.com/2010/06/21.html
बहुत बढ़िया,
बड़ी खूबसूरती से कही अपनी बात आपने.....
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