Friday, April 16, 2010

कथा जारी है..........2 (मिट्टी)




मिट्टी



जाने कब से-

वो मुझमें समाया है,

किसी प्रेत की तरह।

मैं कब वो हो जाता हूँ-

जान ही नहीं पाता,

और कभी वो मुझसे बाहर निकल,

खो जाता है-

अपनी ही दुनियां में।

मुझे लगता है वो भी,

उसी मिट्टी का बना है-

जिसे वो मनचाहा आकार देता रहा है।

इतने वर्षों में कभी

बोलते हुए नही सुना मैने उसे

शायद उस की जीभ भी

मिट्टी की बनी हो,

जो आवा में तपकर लाल हो गई,

और उसे डर है कि

बोलने पर दाँतों से टकराकर

वह टूट जायेगी।

वर्षों बीतने पर भी उसका,

मुझमे आना बदस्तूर जारी है-

बचपन में गाँव की

गलियों में खेलते हुए,

कब मैं-

उसके घर की देहरी से

अन्दर झांकते हुए,

उसे चाक पर

बर्तन बनाते हुए देखता हूँ।

और फिर तो अनाज के बदले

कभी-
घङे,सुराही,छोटे बर्तन,

दीपावली पर दीपक,

गोगा जी के घोङे देने

आ धमकता था वह,

साथ में लम्बा घूंघट निकाले,

कई सारे बच्चों को साथ लेकर,

उसकी घरवाली।

जिसे देखकर मुझे लगा करता था कि-

उसने वो बच्चे एक साथ ही दिए होंगे।

कभी मैं उसके घर पहुँच जाता-

और उसे-

मिट्टी को मनचाहा आकार

देते हुए देखता।

मुझे लगता मिट्टी से वो

जो चाहे वह वस्तु बना लेता होगा-

यहां तक कि पैसा भी।

उसकी बाजरे की रोटी भी

मुझे मिट्टी से बनी लगा करती थी।

आज मुझे ये बातें हास्यास्पद लगती है,

पर उसका आना जारी है-

उसे जरूरी लगता है-

मुझ तक सूचनाएं पहुँचाना।

असमय मिट्टी हो जाना घरवाली का,

शादी के कुछ समय बाद ही

मिट्टी हो जाना बेटी का,

और धीरे-धीरे मिट्टी हो जाना

आस-पास की पूरी दुनियां का,

सबसे बढकर स्वयं का मिट्टी हो जाना,

उसकी मिट्टी की आँखे सोख लेती है-

अपने में ही आँसुओं को।

आज उसका मुझमें होना,

सहज नहीं रहने देता मुझे-

पिछले कई वर्षों को

देखकर लगता है-

वह चाक पर खङा एक ही स्थान पर

घूम रहा है।

हर कहीं नजर आ जाता है वो-

बच्चों के खिलौनो में,

चिलचिलाती धूप में प्यास बुझाती

ठण्डी बोतलों में,

बाजार में खरीददारी करते,

वस्तुओं की कीमतों में,

दीपावली में रोशनी से नहाए

शहर को देखकर, और

कहीं मुश्किल से दिखाई दिए

दीपक की लौ को देखकर-

मुझे लगता है कि वो भी अब

पककर लाल हो गया है-

मैं चिल्लाता हूँ....

अब वह जरा सी चोट पर-

टूट कर बिखर जायेगा।

मैं चिल्लाता हूँ.........

हङबङाहट में उठकर

बैठ जाता हूँ-

पत्नी के शब्द

कानों मे पङते है....

आज फिर कोई बुरा सपना देखा क्या?

मैं कमरे की प्रत्येक वस्तु को ध्यान से

देखता हूँ -

वहां कहीं मिट्टी न थी,

तय नही कर पाता

वो सपना था या.................

फिर...

अपनी ओर ताकती पत्नी को देखकर

मैँ मुँह फेर लेता हूँ

कहीं वो देख ना ले

मेरी आँखों मे फैली हुई...

काली काँप वाली

मिट्टी।।






Thursday, April 15, 2010

एक सार्थक प्रयास.............


साइकिल-समय की जरूरत

ये कम्यूनिटी उन सभी साथियों का स्वागत करती है जो पर्यावरण

संरक्षण,ऊर्जा के संसाधनों की बचत व स्वस्थ भारत के निर्माण हेतु

साइकिल से अपने कार्यस्थलों पर जाते है व दैनिक जीवन में

साइकिल के प्रयोग को बढावा देते है।















श्री दिनेश कुमार चारण
व्याख्याता-इतिहास












श्री अरविन्द कुमार
व्याख्याता-समाजशास्त्र














श्री केशरदेव
व्याख्याता-जीवविज्ञान










श्री बी.एल. मेहरा
व्याख्याता-जीवविज्ञान














श्री मूलचन्द
व्याख्याता-संस्कृत














श्री पी.आर.मेघवाल
व्याख्याता-वनस्पतिशास्त्र













श्री रविन्द्र कुमार
व्याख्याता-भूगोल













श्री जगजीत सिंह कविया
व्याख्याता-समाजशास्त्र












श्री भवानीशंकर शर्मा
व्याख्याता-संस्कृत













श्री हेमन्त मंगल
व्याख्याता-भूगोल












श्री एस.के.सैनी
व्याख्याता-कानून












श्री राजकुमार लाटा
व्याख्याता-हिन्दी














डा.एम.ए.खान
व्याख्याता-भूगोल










श्री सुरेन्द्र डी. सोनी
व्याख्याता-इतिहास










श्री कमलकिशोर वर्मा
व्याख्याता-रसायनशास्त्र











श्री नरेश सिंह











श्री भंवर लाल







पृथ्वी बचाओ

साइकिल अपनाओ..........



राजकीय लोहिया महाविद्यालय शैक्षणिक उत्कृष्टता के साथ विभिन्न सांस्कृतिक व सृजनात्मक गतिविधियों का केन्द्र रहा है। यहाँ के व्याख्याता भी सदैव नये दृष्टिकोण व विचारों का स्वागत करते है।महाविद्यालय का स्टाफ रूम वैचारिक,बौद्धिक बहस का केन्द्र बिन्दु होता है। इन बहसों मे महाविदयालय से लेकर विश्व घटनाक्रम समाहित होता है। हाल के दिनों मे बहस का ज्वलंत मुद्दा वैश्विक स्तर पर हो रहे पर्यावरण परिवर्तन से संबंधित था। पृथ्वी के तापमान मे निरन्तर हो रही बढोतरी,इसी परिप्रेक्ष्य मे आयोजित होने वाले विभिन्न सम्मेलन,इन्टर गवर्नमेन्टल पैनल आन क्लाइमेन्ट चेन्ज की रिपोर्ट,पिघलते ग्लेशियर,वैश्विक स्तर पर हो रहे मौसमी परिवर्तन,अतिवृष्टि व अल्पवृष्टि,प्रदूषित होती नदियां,निरन्तर घटते वन व वन्यजीव,कार्बन उत्सर्जन और इन सब के बीच दूरदर्शन के विज्ञापन में मासूमियत के साथ सवाल करता एक बच्चा कि-'"आप इस तरह पेट्रोल खर्च करोगे तो भविष्य के लिए पेट्रोल बचेगा ही नहीं।"
इन बहसों में समस्याओं के सभी पहलुओं पर विचार ही नहीं किया जाता वरन् इस दिशा मे सार्थक कार्य,समाधान भी प्रस्तुत किये जाते है। वैश्विक स्तर पर हो रहे जलवायु संबंधी परिवर्तन,पर्यावरण प्रदूषण,व उर्जा के संसाधनो मे निरन्तर कमी मानव जाति के लिए चिन्ता का विषय है। इस दिशा मे वैश्विक स्तर पर किये जा रहे प्रयास नाकाफी है। समय की माँग है कि आज प्रत्येक व्यक्ति अपने स्तर पर भी इस दिशा मे सार्थक प्रयास करे। इसी तथ्य को ध्यान मे रखकर समान विचारधारा व रचनात्मक सोच वाले, महाविद्यालय के (सर्वश्री राजकुमार लाटा व्याख्याता-हिन्दी, एम.ए.खान व्याख्याता-भूगोल,श्रवण सैनी व्याख्याता-कानून, हेमन्त मंगल व्याख्याता-भूगोल, दिनेश किमार चारण व्याख्याता-इतिहास, भवानीशंकर शर्मा व्याख्याता-संस्कृत, जगजीत सिंह कविया व्याख्याता-समाजशास्त्र,रविन्द्र कुमार व्याख्याता-भूगोल, मूलचन्द व्याख्याता-संस्कृत, पी.आर.मेघवाल व्याख्याता-वनस्पतिशास्त्र, केशरदेव व्याख्याता-जीवविज्ञान, अरविन्द कुमार व्याख्याता-समाजशास्त्र,श्री कमलकिशोर वर्मा व्याख्याता-रसायनशास्त्र,श्री सुरेन्द्र डी. सोनी व्याख्याता-इतिहास, श्री नरेश सिंह, श्री भंवर लाल ) संवेदनशील व्याख्याता सामूहिक निर्णय करते है कि वे अगले सत्र में महाविद्यालय मे साइकिल से ही आयेंगे। इस तरह ये सभी साथी सेव प्लेनेट अर्थ,पर्यावरण संरक्षण व भविष्य के लिए ऊर्जा बचत की मुहिम मे सहयोग करेंगे।
छठे वेतन आयोग के बाद जहाँ कारों का प्रचलन बढा है और लोग भौतिकता की और आकृष्ट है ऐसे मे ये निर्णय साहसिक है। साथियों के सम्मुख चुनौतिया तो बहुत है पर असली चुनौती तो चुरू का मौसम है जिसे लक्ष्य कर उर्दू के व्याख्याता व प्रसिद्ध शायर एहतशाम अब्बास हैदरी ने कहा है-
इस शहर के मौसम में नई बात है ऐसी।
रातों में बदन उसका महकने नहीं पाता।।
सेव प्लेनेट अर्थ,पर्यावरण संरक्षण,ऊर्जा बचत इस मुहिम का प्रमुख लक्ष्य है पर साइकिल के अप्रत्यक्ष लाभ भी नजरअन्दाज नहीं किये जा सकते। इसके आर्थिक व शारीरिक पहलू भी आकर्षित करते है। सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि लगभग 115 कर्मचारी व 3200 नियमित विद्यार्थियों वाले इस महाविद्यालय मे और लोग भी प्रेरित होकर इस अभियान का हिस्सा बने..........और फिर महाविद्यालय की परिधि से बाहर निकल यह अभियान अन्य लोगों की प्रेरणा बने तभी इसकी सार्थकता है। वैसे भी मिलों लम्बे सफर की शुरूआत प्रथम कदम से ही होती है।

Tuesday, April 13, 2010

साइकिल-समय की जरूरत



साइकिल अपनाओ - पृथ्वी बचाओ




ये कम्यूनिटी उन सभी साथियों का स्वागत करती है जो अपने कार्यस्थलों पर साइकिल से जाते है व दैनिक जीवन में साइकिल के प्रयोग को बढावा देकर पर्यावरण संरक्षण, ऊर्जा संसाधनों की बचत व स्वस्थ भारत के निर्माण की मुहिम में सहभागी बनना चाहते है। यहां कम्यूनिटी से जुङने वाले साथियों के छायाचित्र प्रकाशित है -