Sunday, May 20, 2012

अहसास

अहसास


 1.
ये
शहर
आज भी
तुम्हारे अहसास से
भरा है..
शुक्र है
तुम दोनों में से
एक तो

खरा है।

.............

2.
तुम
नहीं हो
फिर भी
तुम
हर कहीं हो..।

Friday, February 11, 2011

कथा जारी है...

मृगतृष्णा




भीतर का-

सूनापन,

पसरा है मरुभूमि में-

रेत के टीलों सा-

वीरान........

दूर दूर तक कहीं नहीं

आशा रूपी हरियाली...

सूरज सी परिस्थितियां

जलाती है,

करती है संतप्त।

मरूस्थल तङप उठता है,

भीतर की बैचेनी-

भ्रमाती है-

मृगतृष्णा बन,

उठता है-

आशाओं का बवण्डर,

फैल जाता है दूर दूर तक-

किसी बूंद की तलाश में,

पर कहां मिटती है-

बूंदों से प्यास,

अतृप्त मरूस्थल लेता है-

रूप तूफान का,

उङ आसमान में

बांहों में समेटकर -

बादल को,

पी लेता है रस....

मरूस्थल-

तृप्त... शान्त...

उग आती है हरियाली

आशायें पाती है विस्तार,

फिर चर जाते है

समय रूपी जिनावर

मिट जाती है हरियाली

सूख जाता है-

स्नेह रूपी जल,

मरूस्थल फिर तङप उठता है-

हो जाता है खूंखार-

किसी बादल के

इन्तजार में।।

Sunday, July 11, 2010

सेठानी जोहङे से

वक्त की आँधियों से रूपान्तरित टीलों

के मध्य स्थित समतल भूमि में-

पूर्ण वैभव, दिव्य सादगी में

विनित स्वागतोत्सुक-

सेठानी का जोहङ

कोमल हृदय की अनुकृति उदार

जल में धङकनों का स्पंदन

किसी सम्राट-साम्राज्ञी की आत्मकेन्द्रित अनुकृति नहीं

स्व के पर हेतु उत्सर्ग की विराट चेष्टा

स्मृति हृद्य की उदारता, सौन्दर्य की

वर्षों से-

सूरज निहारता रहा है यौवन

सितारों की गुफ्तगू में शरमाकर

चाँद भी उतरता रहा होगा

प्यासे पशु, पक्षी, राहगीर को

देता रहा है-

तृप्ति, विश्राम, सुकून,

लोगों की मनोकामनाओं को संबल।

बांधा है परिवेश को-

विशिष्ट संस्कृति में,

एक दिन मैं भी काट दिया जाऊंगा

वक्त की बेरहम आरी से

किसी सूखे ठूंठ हो चुके पेङ की तरह

पर-

जब तक रहेगा जोहङ

सेठ-सेठानी की उदारता,

उतरती रहेगी

बुजुर्ग सीढियों से युवा धरातल पर,

सूरज निहारता रहेगा यौवन

शरमाकर उतरता रहेगा

चाँद।।


ऐतिहासिक सेठानी जोहङे की सफाई 2 राज बटालियन एन. सी. सी.,चूरू