Thursday, June 24, 2010

खाली हाथ





हर रोज सुबह सूरज आकर

दिन का व्यापार फैलाता है।

लाभ हानि की बांध पोटली

वह पहाङी से ढल जाता है।।

सुबह से सुख दोपहर का दु:ख

शाम में आकर मिल जाता है।

सब   हाथ   की   लकीर  बनकर,

मुट्ठी रातों में बन्ध जाता है।।

पीङा का पतझङ भी आता

और   सुखों का   सावन भी।

सत्य, अटूट ये सिलसिला

कौन इससे  बच पाता है।।

हरियाली से शहर यहां है

और मरूस्थल गाँव बहुत।

किसी के हिस्से में सौगाते

किसी का दामन रीता भी।।

ऋतुओं से बहु धर्म-जातियां

रात दिन से   भेद बहुत,पर-

प्रकृति के नियम अटल है

कौन सदा यहां जी पाता है।।

मानव-मानव में हो समता

उस पार साथ क्या जाता है?

16 comments:

चैन सिंह शेखावत said...

पीङा का पतझङ भी आता
और सुखों का सावन भी।
सत्य, अटूट ये सिलसिला
कौन इससे बच पाता है।।
बहुत सुंदर शब्दों में आपने जीवन के शाश्वत सत्य को उकेरा है। कविता के लिये आपको हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ..

kshama said...

Bahut sundar rachana hai...yah sab jankar bhi aadmee dono haathon se sametna chahta hai!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सुन्दर अभिव्यक्ति....पुरे दिन की चर्चा कर दी है...

Anonymous said...

काश, ये जीवन का सत्य हर कोई समझ लेता।
---------
क्या आप बता सकते हैं कि इंसान और साँप में कौन ज़्यादा ज़हरीला होता है?
अगर हाँ, तो फिर चले आइए रहस्य और रोमाँच से भरी एक नवीन दुनिया में आपका स्वागत है।

चैन सिंह शेखावत said...

पीङा का पतझङ भी आता
और सुखों का सावन भी।
सत्य, अटूट ये सिलसिला
कौन इससे बच पाता है।।
जीवन की सच्चाइयों को दार्शनिक अंदाज़ में प्रभावी तरीके से अभिव्यक्त किया है आपने. एक सुंदर रचना के लिये हार्दिक बधाइयाँ..

Rajeysha said...

इकटठा करना आदमी का काम है सूरज रोज ताजा आता है, क्‍योंकि‍ वो साथ कुछ भी नहीं ले जाता।


नई रचनाओं में आप आमंत्रि‍त हैं।
http://rajey.blogspot.com/

दीनदयाल शर्मा said...

सत्य और सुन्दर अभिव्यक्ति के लिये हार्दिक शुभकामनाएँ..और बधाई....

Unknown said...

बेहद सुंदर रचना.....

Unknown said...

बेहद सुंदर रचना.......

दुलाराम सहारण said...

शहर हरियाली और गांव मरुस्‍थल---

प्रतीक-बिम्‍ब अच्‍छा है।

बधाई

Unknown said...

बहुत ही सुन्दरता से जीवन के धुप छाव को प्रस्तुत किया है ...बधाई सुन्दर रचना के लिए

Unknown said...

बहुत ही सुन्दरता से जीवन के धुप छाव को प्रस्तुत किया है ...बधाई सुन्दर रचना के लिए

Unknown said...

बहुत ही सुन्दरता से जीवन के धुप छाव को प्रस्तुत किया है ...बधाई सुन्दर रचना के लिए

Unknown said...

बहुत ही सुन्दरता से जीवन के धुप छाव को प्रस्तुत किया है ...बधाई सुन्दर रचना के लिए

स्वाति said...

सुबह से सुख दोपहर का दु:ख
शाम में आकर मिल जाता है।
सब हाथ की लकीर बनकर,
मुट्ठी रातों में बन्ध जाता है।।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..

Asha Lata Saxena said...

A nice poem . Nicely woven words .congrats
Asha