सदियों से,
कथा जारी है-
दो
सहमी कबूतर आँखें
भयाक्रांत
खूंखार बिल्ली आँखों से,
लपलपाती साँप जीभे
डसती रही
अतीत,अस्तित्व,
सपनों के घौंसले पर
पैनी निगाहें
बाज की,
अंधा-बहरा अजगर
निगलता
हिस्से की
धरती-आकाश
हवा-धूप,
फिर भी-
बन्दिशें
कब रोक सकी
बैचेन बादल को
प्यासी धरती पर
बरसने से।।
5 comments:
तमाम प्रतिकूलताओं के बावजूद बेचैन बादल का बरसने हेतु तत्पर होना आशावाद की ओर संकेत करता है। युग की विषमताओं और मूल्यहीनताओं के लिये आपने सशक्त प्रतीकों का सफल प्रयोग किया है। सुंदर रचना के लिये आपको बधाई.
सकारात्मक सोच के साथ लिखी गयी सुन्दर कविता
भाई चैनसिंह शेखावत के शब्दों को समर्थन देता हूं।
बेहतरीन रचना।
सुंदर रचना के लिये बधाई....
सुन्दर रचना |बधाई
आशा
Post a Comment