Friday, May 28, 2010

बिखरे रंग








कभी धूप,  कभी साया-

जो मिला अपना लिया।

जिन्दगी - ए- जिन्दगी,

तुझको, मैने पा लिया।।



खुशी,दर्द,सदमें,मुसीबते,

नफरते,  प्यार,   सभी।

हर मौसम के अनुकूल,

मैने खुद को ढाल लिया।।



खुशियों की नदियां भी थी,

और दु:खों के पर्वत भी।

जो भी मिला राह में तेरी,

सबको गले लगा लिया।।



घोर अकेली राते भी थी,

कभी भरे-भरे से थे दिन।

उदासी व मोद को मैने,

गीतों में गुनगुना लिया।।



मुसीबतों   की   आँधी में,

नजर चुराते लोग देखे।

भीतर की टूटन को मैने,

कागज पर उतार लिया।



जिन्दगी तू छोङ पीछे,

एक दिन बढ जायेगी।

गम नहीं हर रस को तेरे,

रूह तक समा लिया।।

9 comments:

चैन सिंह शेखावत said...

गम नहीं हर रस को तेरे,
रूह तक समा लिया।।

क्या फ़लसफ़ा है ज़िन्दगी का उम्मेद जी.
भई बहुत खूब.
बेहद सार्थक और सकारात्मक कविता है आपकी
बधाई .
मुसीबतों की आँधी में
नजर चुराते लोग देखे।

सच्चाई है जनाब

संजय भास्‍कर said...

आपके लेखन ने इसे जानदार और शानदार बना दिया है....

संजय भास्‍कर said...

सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।

kshama said...

Bas ek lafz..Wah! Aapne jeene ka fan seekh liya!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

खुशी,दर्द,सदमें,मुसीबते,
नफरते, प्यार, सभी।
हर मौसम के अनुकूल,
मैने खुद को ढाल लिया।।

जिसने ये कर लिया मानो उसे जीना आ गया..खूबसूरत अभिव्यक्ति

अंजना said...

बहुत बढिया रचना...

nilesh mathur said...

गम नहीं हर रस को तेरे,
रूह तक समा लिया।।

वाह! कमाल की रचना है!

Vinay Kumar Vaidya said...

रोचक प्रस्तुति ।
बधाई ।

Unknown said...

भीतर की टूटन को मैने,कागज पर उतार लिया।..

जज़बातो को महसूस कर उनको कविता में ढालना ये एक कला है जो आप बखूबी निभा रहें है ....बहुत ही सुंदर रचना है ...