Wednesday, May 26, 2010

तेरी याद.......


तेरी याद........



 तेरी यादों के साये में, ये दिल बेचैन रहता है।

  कभी दश्त, कभी सहरा, कभी घर में रहता है।।



पलके खोलता जब भी, सामने तू आ जाती है।

  आँखों मे  दर्ज उसकी, इक तेरा अक्स रहता है।।



बेवफा तू नही है, उसे शिकायत है बस इतनी।

क्यूं हाथों की लकीरों में, भाग्य बन्द रहता है।।



तू  बनके मखमली ख्वाब-सी,  आती है रातों में।

उसे है डर जमाने का, वो आँखे खोले रहता है।।



तेरी खामोशी से लबों पर,  पहरा है जमाने का।

वो रातों में तारों से,  इशारों में कुछ कहता है।।




तेरा मिलकर उससे दूर जाना बस कयामत था।

एक नि:शब्द  झरना-सा  सदा उसमें बहता है।।



मुमकिन  है तुम कभी  अब लौट के न आओ।

 इक  "उम्मीद"  पर वो सदा  सजदे में रहता है।।

10 comments:

माधव( Madhav) said...

बहुत ही सुन्दर और भावनात्मक रचना

चैन सिंह शेखावत said...

इक "उम्मीद" पर वो सदा सजदे में रहता है।।

बहुत खूब उम्मेद जी,
रचना पसंद आई .
शुभकामनाएँ.

Pinaakpaani said...

मुमकिन है तुम कभी अब लौट के न आओ।
इक "उम्मीद" पर वो सदा सजदे में रहता है।।
बढ़िया !!उम्मेद जी.क्या एक शब्द बदलेंगे? 'दशत' को 'दश्त'कर दें तो कैसा रहेगा?

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

अच्छी रचना है ! सुन्दर भावनाएं !

संजय भास्‍कर said...

मुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !

संजय भास्‍कर said...

कमाल की प्रस्तुति ....जितनी तारीफ़ करो मुझे तो कम ही लगेगी

Amit Sharma said...

बहुत खूब उम्मेद जी,
बहुत ही सुन्दर और भावनात्मक रचना शुभकामनाएँ

अनामिका की सदायें ...... said...

dono ko mazburiyo aur uha-poh ko sunder shabdo se ukera hai.bahut acchhi rachna.badhayi.

देवेन्द्र पाण्डेय said...

तेरी यादों के साये में, ये दिल बेचैन रहता है।
कभी दश्त, कभी सहरा, कभी घर में रहता है।।
...वाह!

पुनीत कुमार राय said...

बहुत खूब उम्मेद जी,
"उम्मीद" पर वो सदा सजदे में रहता है
बहुत अच्छा लगा,सुन्दर रचना..शुभकामनाएँ.