तेरी याद........
तेरी यादों के साये में, ये दिल बेचैन रहता है।
कभी दश्त, कभी सहरा, कभी घर में रहता है।।
पलके खोलता जब भी, सामने तू आ जाती है।
आँखों मे दर्ज उसकी, इक तेरा अक्स रहता है।।
बेवफा तू नही है, उसे शिकायत है बस इतनी।
क्यूं हाथों की लकीरों में, भाग्य बन्द रहता है।।
तू बनके मखमली ख्वाब-सी, आती है रातों में।
उसे है डर जमाने का, वो आँखे खोले रहता है।।
तेरी खामोशी से लबों पर, पहरा है जमाने का।
वो रातों में तारों से, इशारों में कुछ कहता है।।
तेरा मिलकर उससे दूर जाना बस कयामत था।
एक नि:शब्द झरना-सा सदा उसमें बहता है।।
मुमकिन है तुम कभी अब लौट के न आओ।
इक "उम्मीद" पर वो सदा सजदे में रहता है।।
10 comments:
बहुत ही सुन्दर और भावनात्मक रचना
इक "उम्मीद" पर वो सदा सजदे में रहता है।।
बहुत खूब उम्मेद जी,
रचना पसंद आई .
शुभकामनाएँ.
मुमकिन है तुम कभी अब लौट के न आओ।
इक "उम्मीद" पर वो सदा सजदे में रहता है।।
बढ़िया !!उम्मेद जी.क्या एक शब्द बदलेंगे? 'दशत' को 'दश्त'कर दें तो कैसा रहेगा?
अच्छी रचना है ! सुन्दर भावनाएं !
मुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !
कमाल की प्रस्तुति ....जितनी तारीफ़ करो मुझे तो कम ही लगेगी
बहुत खूब उम्मेद जी,
बहुत ही सुन्दर और भावनात्मक रचना शुभकामनाएँ
dono ko mazburiyo aur uha-poh ko sunder shabdo se ukera hai.bahut acchhi rachna.badhayi.
तेरी यादों के साये में, ये दिल बेचैन रहता है।
कभी दश्त, कभी सहरा, कभी घर में रहता है।।
...वाह!
बहुत खूब उम्मेद जी,
"उम्मीद" पर वो सदा सजदे में रहता है
बहुत अच्छा लगा,सुन्दर रचना..शुभकामनाएँ.
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