मृगतृष्णा
भीतर का-
सूनापन,
पसरा है मरुभूमि में-
रेत के टीलों सा-
वीरान।
दूर-दूर तक कहीं नहीं,
आशा रूपी हरियाली।
सूरज-सी परिस्थितियां-
जलाती है,
करती है संतप्त।
मरूस्थल तङप उठता है,
भीतर की बैचेनी-
भ्रमाती है-
मृगतृष्णा बन।
उठता है-
आशाओं का बवण्डर,
फैल जाता है दूर-दूर तक-
किसी बूंद की तलाश में,
पर कहां मिटती है-
बूंदों से प्यास!
अतृप्त मरूस्थल लेता है-
रूप तूफान का,
उङ आसमान में-
बांहों में समेटकर -
बादल को,
पी लेता है रस।
मरूस्थल-
तृप्त, शान्त,
उग आती है हरियाली-
आशायें पाती है विस्तार।
फिर चर जाते है-
समय रूपी जानवर
मिट जाती है हरियाली,
सूख जाता है-
स्नेह रूपी जल।
मरूस्थल फिर तङप उठता है-
मरूस्थल फिर तङप उठता है-
हो जाता है खूंखार-
किसी बादल के-
इन्तजार में।।
21 comments:
बेहतरीन प्रस्तुति।
तात्कालिक बोध के कारण खूंखार हो जाना और शाश्वत सत्य के कारण इंतजार में तड़प उठना, मरुस्थल की अपनी विशेषता है।
मृगतृष्णा रूपी इस मायावी संसार का हाल किससे छिपा है बंधु !
श्रेष्ठ सृजन अनवरत रखें।
सादर।
maru bhumi ki marg trashna ,tadap ,shashvat saty hai ,manav ki magtrashna ke saman ...,jab poori nahi ho pati hai to vyakul ho jata hai manav bhi ,or atrapt aashaye tadap utati he ek bavander ke roop mai tufaan ban ker samne aati hai...
आपको पहली बार पढ़ा....ये मृगतृष्णा ...रेगिस्तान...मेरे प्रिय शब्द हैं....सुन्दर रचना
कृपया यहाँ भी आयें
http://geet7553.blogspot.com/
atripti se tripti aur fir atripti ka ye kaal chakr marusthal k roop me bahut sunder shabdo se ukera.
bahut acchha likhte hain aap.
mere blog par aane ke liye dhanyewad.
सशक्त एवं सार्थक लेखन के लिए बधाई ...
बहुत सुन्दर कविता...प्यारा चित्र भी..बधाई.
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'पाखी की दुनिया' में आज मेरी ड्राइंग देखें...
मरूस्थल फिर तङप उठता है-
हो जाता है खूंखार-
किसी बादल के-
इन्तजार में।।
मरुथल को लेकर सुन्दर अभिव्यक्ति!
बेहतरीन सुन्दर कविता
बेहतरीन ब्लॉग उम्मेद जी,
खूबसूरत कविता.
मरुथल के जज्बातों को दर्शाती सुंदर कविता.
बधाई.
आज आपकी कई रचनाएँ पढ़ी, कुछ अलग हटकर हैं आपकी रचनाएँ, बहुत अच्छा लगा पढ़कर!
Kunwar Sa,
Achha likha hai aapne!
Kisi baadal kee intezaar mein.....
मन कि व्यथा को शब्दों मैं बड़ी ही सुन्दरता से ढला है.....
bahut sundar abhivyakti...
अति सुन्दर...
रेगिस्तान और रेतीले धोरों की व्यथा को यहाँ रहने वाला ही जान सकता है ये भी एक जुबान रखते है ,इनकी भी एक तान है जो एक अलग सा मज़ा देती है......
Registaanme hariyali talashti zindgee..! Behad tees samete hue hai yah rachna..!
अच्छी कविता
अच्छी पेशकश, बहुत ही सृजन प्रस्तुति।
बड़ी दूर की बात कही...मरुस्थल व बादल का दंद यूँ ही चलता रहता है. सुन्दर प्रस्तुति..बधाई.
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'शब्द सृजन की ओर' पर आपका स्वागत है !!
behda gehre bhav hain rachna me
sundar prastuti
badhai
मरुथल के जज्बातों को दर्शाती सुंदर कविता.
बधाई............
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