Saturday, May 15, 2010

पुल टूट रहे है..........





पुल टूट रहे है.......


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 ऐ खुदा  इस  दौर में  इन्सान को क्या हो गया।
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  औकात जिसकी जर्रे की, वो भी मकां हो गया।।
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पसन्द  है   झूठ   के आवरण में लिपटे रहना।

सच बोलना इस दौर में, बस गुनाह हो गया।।
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लहलहाती थी कभी मोहब्बतों की फसले यहां।

उस  जगह अब नफरतों  का    सैलाब हो गया।।
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सत्य,  संयम,  सादगी, ईमान, बिकते बाजार में।

 गिरगिट जैसे लोग मिलना, अब आम हो गया।।
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महकता था कभी रिश्तों की खुशबू से जो घर।

 खामोश-सा, वीरान-सा,   ईंटों का मकां हो गया।।
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कंधे बैठ जिसके सीखा था जिन्दगी का सबक।

वो फटा  पुराना   बेकार सा     पायदान हो गया।।
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सजती  है   हरबार वो बनने किसी की हमसफर।

  उसे टूटकर फिर से जुङने का  अभ्यास हो गया।।
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आओ  मिटा दे सब फासले,  ढहा दे दीवारे सभी।

 इक इस "उम्मीद" से मेरी,   रोशन जहां हो गया।।


6 comments:

रचना प्रवेश said...

ummid se hi duniya kayam hai ,ummed ji ek or saty or saral abhivyakti ,achha laga pad ker..........badhai

Ravinder Budania said...

lajbab

Unknown said...

बहुत सुंदर रचना है .....

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

लहलहाती थी कभी मोहब्बतों की फसले यहां।
उस जगह अब नफरतों का सैलाब हो गया।।.

बहुत खूबसूरती से लिखी है..मन की बात....


यहाँ भी आयें...

http://geet7553.blogspot.com/

मैं आपके ब्लॉग को फौलो कर रही हूँ....

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

यह उम्मीद बरकरार रहे...

संजय भास्‍कर said...

बहुत दिनों बाद इतनी बढ़िया कविता पड़ने को मिली.... गजब का लिखा है