साइकिल-समय की जरूरत
ये कम्यूनिटी उन सभी साथियों का स्वागत करती है जो पर्यावरण
संरक्षण,ऊर्जा के संसाधनों की बचत व स्वस्थ भारत के निर्माण हेतु
साइकिल से अपने कार्यस्थलों पर जाते है व दैनिक जीवन में
साइकिल के प्रयोग को बढावा देते है। कम्यूनिटी से जुङे सभी
साथियों के छायाचित्र "एक सार्थक प्रयास" पोस्ट में प्रकाशित है
साथ ही "साइकिल समुदाय" नाम से स्क्रीन पर प्रदर्शित है-
राजकीय लोहिया महाविद्यालय शैक्षणिक उत्कृष्टता के साथ
विभिन्न सांस्कृतिक व सृजनात्मक गतिविधियों का केन्द्र रहा है।यहाँ
के व्याख्याता भी सदैव नये दृष्टिकोण व विचारों का स्वागत करते
है।महाविद्यालय का स्टाफ रूम वैचारिक,बौद्धिक बहस का केन्द्र
बिन्दु होता है। इन बहसों मे महाविदयालय से लेकर विश्व
घटनाक्रम समाहित होता है। हाल के दिनों मे बहस का ज्वलंत मुद्दा
वैश्विक स्तर पर हो रहे पर्यावरण परिवर्तन से संबंधित था। पृथ्वी
के तापमान मे निरन्तर हो रही बढोतरी,इसी परिप्रेक्ष्य मे आयोजित
होने वाले विभिन्न सम्मेलन,इन्टर गवर्नमेन्टल पैनल आन
क्लाइमेन्ट चेन्ज की रिपोर्ट,पिघलते ग्लेशियर,वैश्विक स्तर पर हो रहे
मौसमी परिवर्तन,अतिवृष्टि व अल्पवृष्टि,प्रदूषित होती नदियां,
निरन्तर घटते वन व वन्यजीव,कार्बन उत्सर्जन और इन सब के
बीच दूरदर्शन के विज्ञापन में मासूमियत के साथ सवाल करता एक
बच्चा कि-'"आप इस तरह पेट्रोल खर्च करोगे तो भविष्य के लिए
पेट्रोल बचेगा ही नहीं।"
इन बहसों में समस्याओं के सभी पहलुओं पर विचार ही नहीं
किया जाता वरन् इस दिशा मे सार्थक कार्य,समाधान भी प्रस्तुत
किये जाते है। वैश्विक स्तर पर हो रहे जलवायु संबंधी परिवर्तन,
पर्यावरण प्रदूषण,व उर्जा के संसाधनो मे निरन्तर कमी मानव जाति
के लिए चिन्ता का विषय है। इस दिशा मे वैश्विक स्तर पर किये
जा रहे प्रयास नाकाफी है। समय की माँग है कि आज प्रत्येक
व्यक्ति अपने स्तर पर भी इस दिशा मे सार्थक प्रयास करे। इसी
तथ्य को ध्यान मे रखकर समान विचारधारा व रचनात्मक सोच
वाले,महाविद्यालय के संवेदनशील व्याख्याता सामूहिक निर्णय करते
है कि वे अगले सत्र में महाविद्यालय मे साइकिल से ही आयेंगे।
इस तरह ये सभी साथी सेव प्लेनेट अर्थ,पर्यावरण संरक्षण व
भविष्य के लिए ऊर्जा बचत की मुहिम मे सहयोग करेंगे।छठे वेतन
आयोग के बाद जहाँ कारों का प्रचलन बढा है और लोग भौतिकता
की और आकृष्ट है ऐसे मे ये निर्णय साहसिक है। साथियों के
सम्मुख चुनौतिया तो बहुत है पर असली चुनौती तो चुरू का मौसम
है
सेव प्लेनेट अर्थ,पर्यावरण संरक्षण,ऊर्जा बचत इस मुहिम का
प्रमुख लक्ष्य है पर साइकिल के अप्रत्यक्ष लाभ भी नजरअन्दाज नहीं
किये जा सकते। इसके आर्थिक व शारीरिक पहलू भी आकर्षित
करते है। सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि लगभग 115 कर्मचारी व
3200 नियमित विद्यार्थियों वाले इस महाविद्यालय मे और लोग भी
प्रेरित होकर इस अभियान का हिस्सा बने..........और फिर
महाविद्यालय की परिधि से बाहर निकल यह अभियान अन्य लोगों
की प्रेरणा बने तभी इसकी सार्थकता है। वैसे भी मिलों लम्बे सफर
की शुरूआत प्रथम कदम से ही होती है-
आओ कॉलेज चले हम...
नयी उम्मीदे, नयी उमंगे,
लेकर इक नया पैगाम,
आओ कॉलेज चले हम।
एक एक मिल जुङे कङी,
बन जाये जन का सैलाब,
आओ कॉलेज चले हम।
पेट्रोल भी तो बचाना है,
प्रदूषण को भी मिटाना है,
हरी-भरी हो धरा भरपूर,
महके हर दिशा में गुलाब,
आओ कॉलेज चले हम।
बदला मौसम,गर्माती धरती,
पिघलने लगे है ग्लेशियर,
बढ रहा कार्बन उत्सर्जन,
जन-जन हो जाए चेतन,
आओ कॉलेज चले हम।
स्वस्थ हो तन और मन,
बचे पेट्रोल और बढे धन,
जोशीला हो भारत महान,
दिखे सब मजबूत जवान,
आओ कॉलेज चले हम।
साइकिल आज की शान,
साइकिल है मेरी पहचान,
करे साइकिल का प्रचार,
होकर साइकिल पर सवार-
आओ कॉलेज चले हम।।
14 comments:
सार्थक प्रयास है यह.कागजी बातें करने और कुछ कर दिखने में बहुत फर्क होता है.
इस फर्क को मिटाया है आपके महाविद्यालय के स्टाफ और विद्यार्थियों ने .लोहिया महाविद्यालय को सलाम.
ऐसे ही सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है आज हमें.
जज्बे की जीत हो.आमीन.
अपनी जड़ों जो पहचानना बहुत आवश्यक है
Behad achha prayas hai! Sadak pe riksha,scootar tatha 4 wheelers aisa gadar hota hai,ki,mai swayam saikal to nahi,lekin paidal chali jati hun..Plastic ke istemal ki kadi virodhi hun..
सार्थक प्रयास ....कविता भी अच्छी है....हरे रंग में लिखने से थोड़ी परेशानी आई... :):)
उम्मेद जी , आँख पर बहुत जोर देने के बाद भी ज्यादा नहीं पढ़ पाया कलर बदलें!
सचमुच सार्थक प्रयास है, आज ही साइकल खरीदने कि सोच रहा हूँ!
साइकिल-समय की जरूरत....
बढ़ते प्रदुषण की सार्थक रचना ......!!
पहले तो मैं आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हूँ मेरे ब्लॉग पर आने के लिए और टिपण्णी देने के लिए!
मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत बढ़िया लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! साईकिल तो बहुत ज़रूरी है और मेरे पास तो साईकिल है जिसे चलाना मुझे बेहद पसंद है! उम्दा रचना!
सामयिक, सटीक व सार्थक सोच बधाई....
acchha sandesh deti apki rachna acchhi lagi.
बहुत अच्छी पोस्ट.
साईकिल की सवारी जरूरी है. इसके कई फायदे हैं..स्वास्थ्य..पर्यावरण सभी के लिए जरूरी है.
मैंने इसका महत्व समझते हुए साईकिल खरीदी ..एक-दी दिन दफ्तर भी गया ..लेकिन एक तो २० वर्ष से साईकिल चलाने का छूटा अभ्यास दूसरे भयंकर गर्मी और समय का आभाव ..फिर मोटर साईकिल पर आ गया. जाड़े के मौसम में फिर प्रयास करूँगा.
..यूँ ही लिखते रहें.
साइकल अब एक जरूरत बन के उभरेगी क्यूंकि एक तो संसाधन समाप्ति की और है,दुसरे बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण का और कोई हल नही है.सार्थक प्रयास
उम्मेद जी बहुत सुन्दर प्रस्तुति है आपकी..
सार्थक प्रयास...
साइकिल... बढ़ते पर्यायवरण प्रदूषण के निवारण में ये एक सशक्त योगदान हो सकती हैं...
आभार...
मेरे ब्लॉग पर आने और मेरा हौसला बढ़ने के लिए हृदय से आभारी हूँ...
सचमुच सार्थक प्रयास है,
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